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Widow Property Law: पति की मौत के बाद ससुराल में पत्नी का घर पर होता है ये अधिकार, कोर्ट ने सुनाया फैसला

संविधान में हमारे लिए कुछ अधिकार दिए गए हैं। हमें वो पता होना जरूरी होता है। क्योंकि न्याय के खिलाफ हम हथियार तो नहीं उठा सकते लेकिन कानून का सहारा जरूर ले सकते हैं। वहीं हर अपराध के लिए कानून में अलग प्रावधान है।
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Court order on husband death

Newz Fast, New Delhi सभ्यता का विकास क्रम अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। नई खोजों, नई तकनीकों, नई परिस्थितियों...यानी बदलते हुए दौर के साथ नियम-कायदे भी अपडेट होते रहते हैं। संहिताएं भी नए दौर की जरूरत के हिसाब में बदली जाती हैं तो कानून भी। 

ससुराल के घर पर अधिकार

महिला जिस घर को अपने पति के साथ साझा करती है, वह ससुराल का घर कहा जाता है। ये घर चाहे रेंट पर लिया गया हो, आधिकारिक तौर पर उपलब्ध कराया गया हो या पति के स्वामित्व वाला हो या फिर रिश्तेदारों के स्वामित्व वाला, महिला के लिए वह ससुराल वाला घर यानी मैट्रिमोनियल होम है।

हिंदू अडॉप्शंस ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 (हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून) के तहत हिंदू पत्नी को अपने मैट्रिमोनियल घर में रहने का अधिकार है भले उसके पास उसका स्वामित्व न हो। भले ही वह एक पैतृक घर हो, जॉइंट फैमिली वाला हो, स्वअर्जित हो या फिर किराए का ही घर क्यों न हो। 

हालांकि, अगर ससुराल वालों की स्व-अर्जित संपत्ति है तो उनकी सहमति के बिना विवाहित महिला उसमें नहीं रह सकती क्योंकि इस संपत्ति को शेयर्ड प्रॉपर्टी यानी साझा संपत्ति के तौर पर नहीं लिया जा सकता है।

साफ है कि महिला को अपने मैट्रिमोनियल होम में रहने का अधिकार है लेकिन ये हक तभी तक है जबतक उसके पति के साथ वैवाहिक संबंध बने रहते हैं। हालांकि, पति से अलग होने के बाद भी पत्नी उसके लाइफस्टाइल के हिसाब से जीने के लिए भरण-पोषण की अधिकारी है। 

पति से पैदा हुई संतानों पर भी ये लागू होता है। वैवाहिक रिश्तों में खटास के बावजूद पति अपनी पत्नी और बच्चों के रहने, खाने, कपड़े, पढ़ाई-लिखाई, इलाज वगैरह की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता। उसे इसके लिए भरण-पोषण देना होता है।

साझे के घर पर महिला के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसले

अक्टूबर 2020, सुप्रीम कोर्ट : बहू को साझे के घर में रहने का अधिकार

साझे के घर में बहू को रहने का अधिकार है या नहीं, इसे लेकर दिसंबर 2006 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसला दिया था। तरुणा बत्रा केस में जस्टिस एस. बी. सिन्हा और मार्कंडेय काटजू की बेंच ने कहा था कि एक पत्नी के पास केवल अपने पति की संपत्ति पर अधिकार होता है.

वह साझे के घर में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। हालांकि, अक्टूबर 2020 में जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2006 के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला को ससुराल के साझे घर में रहने का कानूनी अधिकार है।

मई 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने 'साझे के घर' का दायरा बढ़ाया

इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने साझे वाले घर यानी शेयर्ड हाउसहोल्ड की व्याख्या करते हुए महिला के उसमें रहने के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला दिया।

फैसले में शीर्ष अदालत ने 'साझे के घर में रहने के अधिकार' की व्यापक व्याख्या की जो इससे जुड़े मामलों में नजीर साबित होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में डोमेस्टिक ऐक्ट के तहत 'शेयर्ड हाउसहोल्ड' यानी 'साझे वाले घर' में क्या-क्या आएंगे, इसकी व्याख्या की। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला के पास साझे वाले घर में रहने का अधिकार है। वह महिला चाहे जिस भी धर्म से ताल्लुक रखती हो, वह चाहे मां हो, बेटी हो, बहन हो, पत्नी हो, सास हो, बहू हो या फिर घरेलू रिश्ते के तहत आने वाली किसी भी श्रेणी से ताल्लुक रखती हो, उसे साझे वाले घर में रहने का अधिकार है। उसे उस घर से नहीं निकाला जा सकता।

जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अगर कोई महिला शादी के बाद पढ़ाई, रोजगार, नौकरी या अन्य किसी वाजिब वजह से पति के साथ किसी दूसरी जगह पर रहने का फैसला करती है तब भी साझे वाले घर में उसके रहने का अधिकार बना रहेगा। 

इस तरह अगर महिला अपने पति के साथ किसी दूसरे शहर में रह रही है तो उसे अपने पति के घर में रहने का पूरा अधिकार तो है ही, दूसरे शहर या जगह के साझे वाले घर में भी रहने का अधिकार है। डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट का सेक्शन 17 (1) उसे ये अधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उदाहरण देते हुए कहा, 'कोई महिला शादी के बाद नौकरी या रोजगार के सिलसिले में अपने पति के साथ विदेश भी जाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में शादी के बाद महिला के पास साझे वाले घर में रहने का मौका नहीं मिलेगा। 

अगर किसी वजह से उसे विदेश से लौटना पड़ा तो उसके पास अपने पति के साझे वाले घर में रहने का अधिकार होगा। भले ही उस घर पर उसके पति या उसके पति का स्वामित्व न हो। ऐसी स्थिति में सास-ससुर महिला को साझे घर से बाहर नहीं निकाल सकते।'